भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यहाँ थी वह नदी / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
एक नाव
 
एक नाव
 
लोगों का इन्तज़ार कर रही थी
 
लोगों का इन्तज़ार कर रही थी
और पक्षियों की कतार
+
और पक्षियों की क़तार
 
आ रही थी पानी की खोज में
 
आ रही थी पानी की खोज में
  
पंक्ति 16: पंक्ति 16:
 
हम अपने चेहरे देखते थे हिलते हुए
 
हम अपने चेहरे देखते थे हिलते हुए
 
उसके किनारे थे हमारे घर
 
उसके किनारे थे हमारे घर
हमेशा उफ़नती
+
हमेशा उफनती
 
अपने तटों और पत्थरों को प्यार करती
 
अपने तटों और पत्थरों को प्यार करती
 
उस नदी से शुरू होते थे दिन
 
उस नदी से शुरू होते थे दिन

12:15, 20 जून 2020 के समय का अवतरण

जल्दी से वह पहुँचना चाहती थी
उस जगह जहाँ एक आदमी
उसके पानी में नहाने जा रहा था
एक नाव
लोगों का इन्तज़ार कर रही थी
और पक्षियों की क़तार
आ रही थी पानी की खोज में

बचपन की उस नदी में
हम अपने चेहरे देखते थे हिलते हुए
उसके किनारे थे हमारे घर
हमेशा उफनती
अपने तटों और पत्थरों को प्यार करती
उस नदी से शुरू होते थे दिन
उसकी आवाज़
तमाम खिड़कियों पर सुनाई देती थी
लहरें दरवाज़ों को थपथपाती थीं
बुलाती हुईं लगातार

हमे याद है
यहाँ थी वह नदी इसी रेत में
जहाँ हमारे चेहरे हिलते थे
यहाँ थी वह नाव इंतज़ार करती हुई

अब वहाँ कुछ नहीं है
सिर्फ़ रात को जब लोग नींद में होते हैं
कभी-कभी एक आवाज़ सुनाई देती है रेत से