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"तेरे अधरों पर मैं छंद लिखूँ / कमलेश द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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मन करता है तेरे अधरों पर मैं छंद लिखूँ।
 
मन करता है तेरे अधरों पर मैं छंद लिखूँ।

21:29, 1 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

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मन करता है तेरे अधरों पर मैं छंद लिखूँ।
ढाई आखर में होता है क्या आनंद लिखूँ।

रूप-रंग पर लिख डालूँ मैं
कोई आज रुबाई.
नैनों पर दोहे लिख डालूँ
गालों पर चौपाई.
जो साँसों में घुला, ग़ज़ल में वह मकरंद लिखूँ।
ढाई आखर में होता है क्या आनंद लिखूँ।

मेंहदी से लिख दूँ हथेलियों
पर मैं "राधा रानी" ।
लिखूँ महावर से पैरों पर
फिर "मीरा दीवानी" ।
तेरे-मेरे सम्बंधों पर ललित निबंध लिखूँ।
ढाई आखर में होता है क्या आनंद लिखूँ।

फिर गीतों में नख से शिख तक
हर शृंगार लिखूँ मैं।
जो जीवन को जीवन देता
है वह प्यार लिखूँ मैं।
अंतरतम तक ऐसे डूबूँ काव्य प्रबंध लिखूँ।
ढाई आखर में होता है क्या आनंद लिखूँ।