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"किसी के पास में चेहरा नहीं है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | मगर कैसे यकीं से कह रहे हो | ||
+ | समंदर है तो वो प्यासा नहीं है | ||
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15:17, 8 जुलाई 2020 का अवतरण
किसी के पास में चेहरा नहीं है
किसी के पास आईना नहीं है
हमारा घर खुला रहता हमेशा
हमारे घर में दरवाजा नहीं है
चले आओ यहां बेख़ौफ़ होकर
यहां बिल्कुल भी अंधियारा नहीं है
मगर राजा वही है ध्यान रखना
भले अंधा है पर बहरा नहीं है
हमें कैसे ग़ज़ल सूझे बताओ?
हमारे घर में इक दाना नहीं है
मुकम्मल आदमी मैं बन न पाया
मुझे इसका भी पछतावा नहीं है
मगर कैसे यकीं से कह रहे हो
समंदर है तो वो प्यासा नहीं है