"क्यों वह प्रिय आता पार नहीं! / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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− | क्यों वह प्रिय आता पार नहीं! | + | <poem> |
+ | क्यों वह प्रिय आता पार नहीं! | ||
− | शशि के दर्पण देख देख, | + | शशि के दर्पण देख देख, |
− | मैंने सुलझाये तिमिर-केश; | + | मैंने सुलझाये तिमिर-केश; |
− | गूँथे चुन तारक-पारिजात, | + | गूँथे चुन तारक-पारिजात, |
− | अवगुण्ठन कर किरणें अशेष; | + | अवगुण्ठन कर किरणें अशेष; |
− | क्यों आज रिझा पाया उसको | + | क्यों आज रिझा पाया उसको |
− | मेरा अभिनव श्रृंगार नहीं? | + | मेरा अभिनव श्रृंगार नहीं? |
− | स्मित से कर फीके अधर अरुण, | + | स्मित से कर फीके अधर अरुण, |
− | गति के जावक से चरण लाल, | + | गति के जावक से चरण लाल, |
− | स्वप्नों से गीली पलक आँज, | + | स्वप्नों से गीली पलक आँज, |
− | सीमन्त तजा ली अश्रु-माल; | + | सीमन्त तजा ली अश्रु-माल; |
− | स्पन्दन मिस प्रतिपल भेज रही | + | स्पन्दन मिस प्रतिपल भेज रही |
− | क्या युग युग से मनुहार नहीं? | + | क्या युग युग से मनुहार नहीं? |
− | मैं आज चुपा आई चातक, | + | मैं आज चुपा आई चातक, |
− | मैं आज सुला आई कोकिल; | + | मैं आज सुला आई कोकिल; |
− | कण्टकित मौलश्री हरसिंगार, | + | कण्टकित मौलश्री हरसिंगार, |
− | रोके हैं अपने शिथिल! | + | रोके हैं अपने शिथिल! |
− | सोया समीर नीरव जग पर | + | सोया समीर नीरव जग पर |
− | स्मृतियों का भी मृदु भार नहीं! | + | स्मृतियों का भी मृदु भार नहीं! |
− | रूँधे हैं, सिहरा सा दिगन्त, | + | रूँधे हैं, सिहरा सा दिगन्त, |
− | नत पाटलदल से मृदु बादल; | + | नत पाटलदल से मृदु बादल; |
− | उस पार रुका आलोक-यान, | + | उस पार रुका आलोक-यान, |
− | इस पार प्राण का कोलाहल! | + | इस पार प्राण का कोलाहल! |
− | बेसुध निद्रा है आज बुने- | + | बेसुध निद्रा है आज बुने- |
− | जाते श्वासों के तार नहीं! | + | जाते श्वासों के तार नहीं! |
− | दिन-रात पथिक थक गए लौट, | + | दिन-रात पथिक थक गए लौट, |
− | फिर गए मना निमिष हार; | + | फिर गए मना निमिष हार; |
− | पाथेय मुझे सुधि मधुर एक, | + | पाथेय मुझे सुधि मधुर एक, |
− | है विरह पन्थ सूना अपार! | + | है विरह पन्थ सूना अपार! |
− | फिर कौन कह रहा है सूना | + | फिर कौन कह रहा है सूना |
− | अब तक मेरा अभिसार नहीं? < | + | अब तक मेरा अभिसार नहीं? |
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22:52, 11 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
क्यों वह प्रिय आता पार नहीं!
शशि के दर्पण देख देख,
मैंने सुलझाये तिमिर-केश;
गूँथे चुन तारक-पारिजात,
अवगुण्ठन कर किरणें अशेष;
क्यों आज रिझा पाया उसको
मेरा अभिनव श्रृंगार नहीं?
स्मित से कर फीके अधर अरुण,
गति के जावक से चरण लाल,
स्वप्नों से गीली पलक आँज,
सीमन्त तजा ली अश्रु-माल;
स्पन्दन मिस प्रतिपल भेज रही
क्या युग युग से मनुहार नहीं?
मैं आज चुपा आई चातक,
मैं आज सुला आई कोकिल;
कण्टकित मौलश्री हरसिंगार,
रोके हैं अपने शिथिल!
सोया समीर नीरव जग पर
स्मृतियों का भी मृदु भार नहीं!
रूँधे हैं, सिहरा सा दिगन्त,
नत पाटलदल से मृदु बादल;
उस पार रुका आलोक-यान,
इस पार प्राण का कोलाहल!
बेसुध निद्रा है आज बुने-
जाते श्वासों के तार नहीं!
दिन-रात पथिक थक गए लौट,
फिर गए मना निमिष हार;
पाथेय मुझे सुधि मधुर एक,
है विरह पन्थ सूना अपार!
फिर कौन कह रहा है सूना
अब तक मेरा अभिसार नहीं?