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"विरह की घडियाँ हुई अलि / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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− | विरह की घडियाँ हुई अलि मधुर मधु की यामिनी सी! | + | <poem> |
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− | दूर के नक्षत्र लगते पुतलियों से पास प्रियतर, | + | दूर के नक्षत्र लगते पुतलियों से पास प्रियतर, |
− | शून्य नभ की मूकता में गूँजता आह्वान का स्वर, | + | शून्य नभ की मूकता में गूँजता आह्वान का स्वर, |
− | आज है नि:सीमता | + | आज है नि:सीमता |
− | लघु प्राण की अनुगामिनी सी! | + | लघु प्राण की अनुगामिनी सी! |
− | एक स्पन्दन कह रहा है अकथ युग युग की कहानी; | + | एक स्पन्दन कह रहा है अकथ युग युग की कहानी; |
− | हो गया स्मित से मधुर इन लोचनों का क्षार पानी; | + | हो गया स्मित से मधुर इन लोचनों का क्षार पानी; |
− | मूक प्रतिनिश्वास है | + | मूक प्रतिनिश्वास है |
− | नव स्वप्न की अनुरागिनी सी! | + | नव स्वप्न की अनुरागिनी सी! |
− | सजनि! अन्तर्हित हुआ है ‘आज में धुँधला विफल ‘कल’ | + | सजनि! अन्तर्हित हुआ है ‘आज में धुँधला विफल ‘कल’ |
− | हो गया है मिलन एकाकार मेरे विरह में मिल; | + | हो गया है मिलन एकाकार मेरे विरह में मिल; |
− | राह मेरी देखतीं | + | राह मेरी देखतीं |
− | स्मृति अब निराश पुजारिनी सी! | + | स्मृति अब निराश पुजारिनी सी! |
− | फैलते हैं सान्ध्य नभ में भाव ही मेरे रँगीले; | + | फैलते हैं सान्ध्य नभ में भाव ही मेरे रँगीले; |
− | तिमिर की दीपावली हैं रोम मेरे पुलक-गीले; | + | तिमिर की दीपावली हैं रोम मेरे पुलक-गीले; |
− | बन्दिनी बनकर हुई | + | बन्दिनी बनकर हुई |
− | मैं बन्धनों की स्वामिनी सी!< | + | मैं बन्धनों की स्वामिनी सी! |
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22:55, 11 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
विरह की घडियाँ हुई अलि मधुर मधु की यामिनी सी!
दूर के नक्षत्र लगते पुतलियों से पास प्रियतर,
शून्य नभ की मूकता में गूँजता आह्वान का स्वर,
आज है नि:सीमता
लघु प्राण की अनुगामिनी सी!
एक स्पन्दन कह रहा है अकथ युग युग की कहानी;
हो गया स्मित से मधुर इन लोचनों का क्षार पानी;
मूक प्रतिनिश्वास है
नव स्वप्न की अनुरागिनी सी!
सजनि! अन्तर्हित हुआ है ‘आज में धुँधला विफल ‘कल’
हो गया है मिलन एकाकार मेरे विरह में मिल;
राह मेरी देखतीं
स्मृति अब निराश पुजारिनी सी!
फैलते हैं सान्ध्य नभ में भाव ही मेरे रँगीले;
तिमिर की दीपावली हैं रोम मेरे पुलक-गीले;
बन्दिनी बनकर हुई
मैं बन्धनों की स्वामिनी सी!