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"शलभ मैं शापमय वर हूँ! / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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ताज है जलती शिखा
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नयन में रह किन्तु जलती
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प्राण मैं कैसे बसाऊँ
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हो रहे झर कर दृगों से<br>
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पिघलते उर से निकल
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निश्वास बनते धूम श्यामल;
एक ज्वाला के बिना मैं राख का घर हूँ!<br><br>
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एक ज्वाला के बिना मैं राख का घर हूँ!
  
कौन आया था न जाना<br>
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कौन आया था न जाना
स्वप्न में मुझको जगाने;<br>
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याद में उन अँगुलियों के<br>
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है मुझे पर युग बिताने;<br>
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रात के उर में दिवस की चाह का शर हूँ!<br><br>
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रात के उर में दिवस की चाह का शर हूँ!
  
शून्य मेरा जन्म था<br>
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शून्य मेरा जन्म था
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प्राण आकुल के लिए
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संगी मिला केवल अँधेरा;
मिलन का मत नाम ले मैं विरह में चिर हूँ!<br><br>
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मिलन का मत नाम ले मैं विरह में चिर हूँ!
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22:56, 11 जुलाई 2020 का अवतरण

शलभ मैं शापमय वर हूँ!
किसी का दीप निष्ठुर हूँ!

ताज है जलती शिखा
चिनगारियाँ श्रृंगारमाला;
ज्वाल अक्षय कोष सी
अंगार मेरी रंगशाला;
नाश में जीवित किसी की साध सुन्दर हूँ!

नयन में रह किन्तु जलती
पुतलियाँ आगार होंगी;
प्राण मैं कैसे बसाऊँ
कठिन अग्नि-समाधि होगी;
फिर कहाँ पालूँ तुझे मैं मृत्यु-मन्दिर हूँ!
हो रहे झर कर दृगों से
अग्नि-कण भी क्षार शीतल;
पिघलते उर से निकल
निश्वास बनते धूम श्यामल;
एक ज्वाला के बिना मैं राख का घर हूँ!

कौन आया था न जाना
स्वप्न में मुझको जगाने;
याद में उन अँगुलियों के
है मुझे पर युग बिताने;
रात के उर में दिवस की चाह का शर हूँ!

शून्य मेरा जन्म था
अवसान है मूझको सबेरा;
प्राण आकुल के लिए
संगी मिला केवल अँधेरा;
मिलन का मत नाम ले मैं विरह में चिर हूँ!