"सब बुझे दीपक जला लूँ / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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+ | लास तन्मय तडित बांधी, | ||
+ | धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं! | ||
− | + | भीत तारक मूंदते द्रग | |
− | + | भ्रान्त मारुत पथ न पाता, | |
− | + | छोड उल्का अंक नभ में | |
− | + | ध्वंस आता हरहराता | |
− | + | उंगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूं! | |
− | + | लय बनी मृदु वर्तिका | |
− | + | हर स्वर बना बन लौ सजीली, | |
− | + | फैलती आलोक सी | |
− | + | झंकार मेरी स्नेह गीली | |
− | + | इस मरण के पर्व को मैं आज दीवाली बना लूं! | |
− | + | देखकर कोमल व्यथा को | |
− | + | आंसुओं के सजल रथ में, | |
− | + | मोम सी सांधे बिछा दीं | |
− | + | थीं इसी अंगार पथ में | |
− | + | स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार में उनको सुला लूं! | |
− | + | अब तरी पतवार लाकर | |
− | + | तुम दिखा मत पार देना, | |
− | + | आज गर्जन में मुझे बस | |
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− | आज दीपक राग गा लूं!< | + |
23:00, 11 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
सब बुझे दीपक जला लूं
घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं
क्षितिज कारा तोडकर अब
गा उठी उन्मत आंधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास तन्मय तडित बांधी,
धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं!
भीत तारक मूंदते द्रग
भ्रान्त मारुत पथ न पाता,
छोड उल्का अंक नभ में
ध्वंस आता हरहराता
उंगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूं!
लय बनी मृदु वर्तिका
हर स्वर बना बन लौ सजीली,
फैलती आलोक सी
झंकार मेरी स्नेह गीली
इस मरण के पर्व को मैं आज दीवाली बना लूं!
देखकर कोमल व्यथा को
आंसुओं के सजल रथ में,
मोम सी सांधे बिछा दीं
थीं इसी अंगार पथ में
स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार में उनको सुला लूं!
अब तरी पतवार लाकर
तुम दिखा मत पार देना,
आज गर्जन में मुझे बस
एक बार पुकार लेना
ज्वार की तरिणी बना मैं इस प्रलय को पार पा लूं!
आज दीपक राग गा लूं!