भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जो न प्रिय पहिचान पाती / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
 
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
 +
|अनुवादक=
 
|संग्रह=दीपशिखा / महादेवी वर्मा
 
|संग्रह=दीपशिखा / महादेवी वर्मा
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
जो न प्रिय पहिचान पाती।
 +
दौड़ती क्यों प्रति शिरा में प्यास विद्युत-सी तरल बन
 +
क्यों अचेतन रोम पाते चिर व्यथामय सजग जीवन?
 +
किसलिये हर साँस तम में
 +
सजल दीपक राग गाती?
  
जो न प्रिय पहिचान पाती।<br>
+
चांदनी के बादलों से स्वप्न फिर-फिर घेरते क्यों?
दौड़ती क्यों प्रति शिरा में प्यास विद्युत-सी तरल बन<br>
+
मदिर सौरभ से सने क्षण दिवस-रात बिखेरते क्यों?
क्यों अचेतन रोम पाते चिर व्यथामय सजग जीवन?<br>
+
सजग स्मित क्यों चितवनों के
किसलिये हर साँस तम में<br>
+
सुप्त प्रहरी को जगाती?
सजल दीपक राग गाती?<br><br>
+
  
चांदनी के बादलों से स्वप्न फिर-फिर घेरते क्यों?<br>
+
मेघ-पथ में चिह्न विद्युत के गये जो छोड़ प्रिय-पद,
मदिर सौरभ से सने क्षण दिवस-रात बिखेरते क्यों?<br>
+
जो न उनकी चाप का मैं जानती सन्देश उन्मद,
सजग स्मित क्यों चितवनों के<br>
+
किसलिये पावस नयन में
सुप्त प्रहरी को जगाती?<br><br>
+
प्राण में चातक बसाती?
  
मेघ-पथ में चिह्न विद्युत के गये जो छोड़ प्रिय-पद,<br>
+
कल्प-युगव्यापी विरह को एक सिहरन में सँभाले,
जो न उनकी चाप का मैं जानती सन्देश उन्मद,<br>
+
शून्यता भर तरल मोती से मधुर सुधि-दीप बाले,
किसलिये पावस नयन में<br>
+
क्यों किसी के आगमन के
प्राण में चातक बसाती?<br><br>
+
शकुन स्पन्दन में मनाती?
 
+
</poem>
कल्प-युगव्यापी विरह को एक सिहरन में सँभाले,<br>
+
शून्यता भर तरल मोती से मधुर सुधि-दीप बाले,<br>
+
क्यों किसी के आगमन के<br>
+
शकुन स्पन्दन में मनाती?<br><br>
+

22:14, 12 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

जो न प्रिय पहिचान पाती।
दौड़ती क्यों प्रति शिरा में प्यास विद्युत-सी तरल बन
क्यों अचेतन रोम पाते चिर व्यथामय सजग जीवन?
किसलिये हर साँस तम में
सजल दीपक राग गाती?

चांदनी के बादलों से स्वप्न फिर-फिर घेरते क्यों?
मदिर सौरभ से सने क्षण दिवस-रात बिखेरते क्यों?
सजग स्मित क्यों चितवनों के
सुप्त प्रहरी को जगाती?

मेघ-पथ में चिह्न विद्युत के गये जो छोड़ प्रिय-पद,
जो न उनकी चाप का मैं जानती सन्देश उन्मद,
किसलिये पावस नयन में
प्राण में चातक बसाती?

कल्प-युगव्यापी विरह को एक सिहरन में सँभाले,
शून्यता भर तरल मोती से मधुर सुधि-दीप बाले,
क्यों किसी के आगमन के
शकुन स्पन्दन में मनाती?