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"दीन भारतवर्ष / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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'''दीन भारतवर्ष'''
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सिरमौर सा तुझको रचा था
 
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विश्व में करतार ने,
 
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आकृष्ट था सब को किया
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तेरे, मधुर व्यवहार ने।
 
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नव शिष्य तेरे मध्य भारत
 
नव शिष्य तेरे मध्य भारत
  
 
नित्य आते थे चले,
 
नित्य आते थे चले,
 
 
जैसे सुमन की गंध से
 
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अलिवृन्द आ-आकर मिले।
 
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वह युग कहाँ अब खो गया वे देव वे देवी नहीं,
वह युग कहाँ अब खो गया
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वे देव वे देवी नहीं,
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ऐसी परीक्षा भाग्य ने
 
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किस देश की ली थी कहीं।
 
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जिस कुंज वन में कोकिला के
 
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गान सुनते थे भले,
 
गान सुनते थे भले,
 
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रव है उलूकों का वहाँ
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क्या भाग्य हैं अपने जले।
 
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अवतार प्रभु लेते रहे
 
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अवतार ले फिर आइए,
 
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इस दीन भारतवर्ष को
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फिर पुण्य भूमि बनाइए।
  
इस दीन भारतवर्ष को
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यह महादेवी जी के बचपन की रचना है।
 
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फिर पुण्य भूमि बनाइए।
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22:28, 12 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

सिरमौर सा तुझको रचा था
विश्व में करतार ने,
आकृष्ट था सब को किया
तेरे, मधुर व्यवहार ने।
नव शिष्य तेरे मध्य भारत

नित्य आते थे चले,
जैसे सुमन की गंध से
अलिवृन्द आ-आकर मिले।
वह युग कहाँ अब खो गया वे देव वे देवी नहीं,

ऐसी परीक्षा भाग्य ने
किस देश की ली थी कहीं।
जिस कुंज वन में कोकिला के
गान सुनते थे भले,
रव है उलूकों का वहाँ
क्या भाग्य हैं अपने जले।

अवतार प्रभु लेते रहे
अवतार ले फिर आइए,
इस दीन भारतवर्ष को
फिर पुण्य भूमि बनाइए।

यह महादेवी जी के बचपन की रचना है।