भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जब आग लगे... / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: सीखो नित नूतन ज्ञान,नई परिभाषाएं, जब आग लगे,गहरी समाधि में रम जाओ; ...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
सीखो नित नूतन ज्ञान,नई परिभाषाएं,
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
<poem>सीखो नित नूतन ज्ञान,नई परिभाषाएं,
 
जब आग लगे,गहरी समाधि में रम जाओ;
 
जब आग लगे,गहरी समाधि में रम जाओ;
 
या सिर के बल हो खडे परिक्रमा में घूमो।
 
या सिर के बल हो खडे परिक्रमा में घूमो।

18:11, 18 सितम्बर 2008 का अवतरण

सीखो नित नूतन ज्ञान,नई परिभाषाएं,
जब आग लगे,गहरी समाधि में रम जाओ;
या सिर के बल हो खडे परिक्रमा में घूमो।
ढब और कौन हैं चतुर बुद्धि-बाजीगर के?

गांधी को उल्‍टा घिसो और जो धूल झरे,
उसके प्रलेप से अपनी कुण्‍ठा के मुख पर,
ऐसी नक्‍काशी गढो कि जो देखे, बोले,
आखिर , बापू भी और बात क्‍या कहते थे?

डगमगा रहे हों पांव लोग जब हंसते हों,
मत चिढो,ध्‍यान मत दो इन छोटी बातों पर
कल्‍पना जगदगुरु की हो जिसके सिर पर,
वह भला कहां तक ठोस कदम धर सकता है?

औ; गिर भी जो तुम गये किसी गहराई में,
तब भी तो इतनी बात शेष रह जाएगी
यह पतन नहीं, है एक देश पाताल गया,
प्‍यासी धरती के लिए अमृतघट लाने को।