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"जगत है चक्‍की एक विराट / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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जगत है चक्‍की एक विराट
 
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पाट दो जिसके दीर्घाकार-
 
पाट दो जिसके दीर्घाकार-
 
 
गगन जिसका ऊपर फैलाव
 
गगन जिसका ऊपर फैलाव
 
 
अवनि जिसका नीचे विस्‍तार;
 
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नहीं इसमें पड़ने का खेद,
:::नहीं इसमें पड़ने का खेद,
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मुझे तो यह करता हैरान,
 
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कि घिसता है यह यंत्र महान
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कि पिसता है यह लघु इंसान!
 
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:::कि घिसता है यह यंत्र महान
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:::कि पिसता है यह लघु इंसान!
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19:57, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

जगत है चक्‍की एक विराट
पाट दो जिसके दीर्घाकार-
गगन जिसका ऊपर फैलाव
अवनि जिसका नीचे विस्‍तार;

नहीं इसमें पड़ने का खेद,
मुझे तो यह करता हैरान,
कि घिसता है यह यंत्र महान
कि पिसता है यह लघु इंसान!