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"दो नयन / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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दो नयन जिससे कि फिर मैं | दो नयन जिससे कि फिर मैं | ||
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विश्व का श्रृंगार देखूँ। | विश्व का श्रृंगार देखूँ। | ||
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स्वप्न की जलती हुई नगरी | स्वप्न की जलती हुई नगरी | ||
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धुआँ जिसमें गई भर, | धुआँ जिसमें गई भर, | ||
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ज्योति जिनकी जा चुकी है | ज्योति जिनकी जा चुकी है | ||
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आँसुओं के साथ झर-झर, | आँसुओं के साथ झर-झर, | ||
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मैं उन्हीं से किस तरह फिर | मैं उन्हीं से किस तरह फिर | ||
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ज्योति का संसार देखूँ, | ज्योति का संसार देखूँ, | ||
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दो नयन जिससे कि फिर मैं | दो नयन जिससे कि फिर मैं | ||
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विश्व का श्रृंगार देखूँ। | विश्व का श्रृंगार देखूँ। | ||
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देखते युग-युग रहे जो | देखते युग-युग रहे जो | ||
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विश्व का वह रुप अल्पक, | विश्व का वह रुप अल्पक, | ||
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जो उपेक्षा, छल घृणा में | जो उपेक्षा, छल घृणा में | ||
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मग्न था नख से शिखा तक, | मग्न था नख से शिखा तक, | ||
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मैं उन्हीं से किस तरह फिर | मैं उन्हीं से किस तरह फिर | ||
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प्यार का संसार देखूँ, | प्यार का संसार देखूँ, | ||
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दो नयन जिससे कि फिर मैं | दो नयन जिससे कि फिर मैं | ||
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विश्व का श्रृंगार देखूँ। | विश्व का श्रृंगार देखूँ। | ||
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संकुचित दृग की परिधि थी | संकुचित दृग की परिधि थी | ||
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बात यह मैं मान लूँगा, | बात यह मैं मान लूँगा, | ||
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विश्व का इससे जुदा जब | विश्व का इससे जुदा जब | ||
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रुप भी मैं जान लूँगा, | रुप भी मैं जान लूँगा, | ||
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दो नयन जिससे कि मैं | दो नयन जिससे कि मैं | ||
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संसार का विस्तार देखूँ; | संसार का विस्तार देखूँ; | ||
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दो नयन जिससे कि फिर मैं | दो नयन जिससे कि फिर मैं | ||
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विश्व का श्रृंगार देखूँ। | विश्व का श्रृंगार देखूँ। | ||
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21:33, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
दो नयन जिससे कि फिर मैं
विश्व का श्रृंगार देखूँ।
स्वप्न की जलती हुई नगरी
धुआँ जिसमें गई भर,
ज्योति जिनकी जा चुकी है
आँसुओं के साथ झर-झर,
मैं उन्हीं से किस तरह फिर
ज्योति का संसार देखूँ,
दो नयन जिससे कि फिर मैं
विश्व का श्रृंगार देखूँ।
देखते युग-युग रहे जो
विश्व का वह रुप अल्पक,
जो उपेक्षा, छल घृणा में
मग्न था नख से शिखा तक,
मैं उन्हीं से किस तरह फिर
प्यार का संसार देखूँ,
दो नयन जिससे कि फिर मैं
विश्व का श्रृंगार देखूँ।
संकुचित दृग की परिधि थी
बात यह मैं मान लूँगा,
विश्व का इससे जुदा जब
रुप भी मैं जान लूँगा,
दो नयन जिससे कि मैं
संसार का विस्तार देखूँ;
दो नयन जिससे कि फिर मैं
विश्व का श्रृंगार देखूँ।