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"ओ पावस के पहले बादल / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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ओ पावस के पहले बादल,  
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ओ पावस के पहले बादल,
 
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उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक
उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक  
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मेरे मन-प्राणों पर बरसों।
 
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यह आशा की लतिकाएँ थीं
 
यह आशा की लतिकाएँ थीं
  
 
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जो बिखरीं आकुल-व्याकुल-सी,
जो बिखरीं आकुल-व्‍याकुल-सी,  
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यह स्वप्नों की कलिकाएँ थीं
 
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जो खिलने से पहले झुलसीं,
यह स्‍वप्‍नों की कलिकाएँ थीं  
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जो खिलने से पहले झुलसीं,  
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यह मधुवन था, जो सुना-सा
 
यह मधुवन था, जो सुना-सा
 
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मरुथल दिखलाई पड़ता है,
मरुथल दिखलाई पड़ता है,  
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इन सुखे कूल-किनारों में
 
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थी एक समय सरिता हुलसी;
इन सुखे कूल-किनारों में  
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आँसू की बूँदें चाट कहीं
 
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अंतर की तृष्णा मिटती है;
थी एक समय सरिता हुलसी;  
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ओ पावस के पहले बादल,
 
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उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक
आँसू की बूँदें चाट कहीं  
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अंतर की तृष्‍णा मिटती है;
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ओ पावस के पहले बादल,  
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उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक  
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मेरे मन-प्राणों पर बरसों।
 
मेरे मन-प्राणों पर बरसों।
  
 
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मेरे उच्छ्वास बने शीतल
मेरे उच्‍छ्वास बने शीतल  
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तो जग में मलयानिल डोले,
 
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तो जग में मलयानिल डोले,  
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मेरा अंतर लहराएँ तो
 
मेरा अंतर लहराएँ तो
 
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जगती अपना कल्मष धो ले,
जगती अपना कल्‍मष धो ले,  
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सतरंगा इंद्रधनुष निकले
 
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मेरे मन के धुँधले पट पर,
सतरंगा इंद्रधनुष निकले  
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तो दुनिया सुख की, सुखमा की,
 
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मंगल वेला की जय बोले;
मेरे मन के धुँधले पट पर,  
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सुख है तो औरों को छूकर
 
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अपने से सुखमय कर देगा,
तो दुनिया सुख की, सुखमा की,  
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मंगल वेला की जय बोले;  
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सुख है तो औरों को छूकर  
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अपने से सुखमय कर देगा,  
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ओ वर्षा के हर्षित बादल,
 
ओ वर्षा के हर्षित बादल,
 
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उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक
उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक  
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मेरे अरमानों पर बरसो।
 
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ओ पावस के पहले बादल,
मेरे अरमानों पर बरसो।  
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उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक
 
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ओ पावस के पहले बादल,  
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उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक  
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मेरे मन-प्राणों पर बरसों।
 
मेरे मन-प्राणों पर बरसों।
  
 
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सुख की घड़ियों के स्वागत में
सुख की घ‍ड़ियों के स्‍वागत में  
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छंदों पर छंद सजाता हूँ,
 
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पर अपने दुख के दर्द भरे
छंदों पर छंद सजाता हूँ,  
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गीतों पर कब पछताता हूँ,
 
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जो औरों का आनंद बना
पर अपने दुख के दर्द भरे  
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वह दुख मुझपर फिर-फिर आए,
 
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रस में भीगे दुख के ऊपर
गीतों पर कब पछताता हूँ,  
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मैं सुख का स्वर्ग लुटाता हूँ;
 
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कंठों से फूट न जो निकले
जो औरों का आनंद बना  
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कवि को क्या उस दुख सें, सुख से;
 
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वह दुख मुझपर फिर-फिर आए,  
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रस में भीगे दुख के ऊपर  
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मैं सुख का स्‍वर्ग लुटाता हूँ;  
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कंठों से फूट न जो निकले  
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कवि को क्‍या उस दुख सें, सुख से;  
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ओ बारिश के बेख़ुद बादल,
 
ओ बारिश के बेख़ुद बादल,
 
 
उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक
 
उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक
 
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मेरे स्वर-गानों पर बरसों।
मेरे स्‍वर-गानों पर बरसों।
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ओ पावस के पहले बादल,
 
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उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक
ओ पावस के पहले बादल,  
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उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक  
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मेरे मन-प्राणों पर बरसों।
 
मेरे मन-प्राणों पर बरसों।
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22:07, 26 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

ओ पावस के पहले बादल,
उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक
मेरे मन-प्राणों पर बरसों।

यह आशा की लतिकाएँ थीं

जो बिखरीं आकुल-व्याकुल-सी,
यह स्वप्नों की कलिकाएँ थीं
जो खिलने से पहले झुलसीं,
यह मधुवन था, जो सुना-सा
मरुथल दिखलाई पड़ता है,
इन सुखे कूल-किनारों में
थी एक समय सरिता हुलसी;
आँसू की बूँदें चाट कहीं
अंतर की तृष्णा मिटती है;
ओ पावस के पहले बादल,
उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक
मेरे मन-प्राणों पर बरसों।

मेरे उच्छ्वास बने शीतल
तो जग में मलयानिल डोले,
मेरा अंतर लहराएँ तो
जगती अपना कल्मष धो ले,
सतरंगा इंद्रधनुष निकले
मेरे मन के धुँधले पट पर,
तो दुनिया सुख की, सुखमा की,
मंगल वेला की जय बोले;
सुख है तो औरों को छूकर
अपने से सुखमय कर देगा,
ओ वर्षा के हर्षित बादल,
उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक
मेरे अरमानों पर बरसो।
ओ पावस के पहले बादल,
उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक
मेरे मन-प्राणों पर बरसों।

सुख की घड़ियों के स्वागत में
छंदों पर छंद सजाता हूँ,
पर अपने दुख के दर्द भरे
गीतों पर कब पछताता हूँ,
जो औरों का आनंद बना
वह दुख मुझपर फिर-फिर आए,
रस में भीगे दुख के ऊपर
मैं सुख का स्वर्ग लुटाता हूँ;
कंठों से फूट न जो निकले
कवि को क्या उस दुख सें, सुख से;
ओ बारिश के बेख़ुद बादल,
उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक
मेरे स्वर-गानों पर बरसों।
ओ पावस के पहले बादल,
उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक
मेरे मन-प्राणों पर बरसों।