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आस्‍था / हरिवंशराय बच्चन

170 bytes added, 16:30, 28 जुलाई 2020
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|अनुवादक=
|संग्रह=उभरते प्रतिमानों के रूप / हरिवंशराय बच्चन
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
तुमने
 
प्रतिमा का सिर काट लिया,
 
पर लोगों ने उसे सिर झुकाना नहीं छोड़ा है।
 
तुमने मूर्ति को नहीं तोड़ा,
 लोगों की आस्‍था आस्था को नहीं तोड़ा है। और आस्‍था आस्था ने 
बहुत बार
 
कटे सिर को कटे धर से जोड़ा है।
</poem>
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