"प्रतिरोधी सबका स्वर होगा / अंकित काव्यांश" के अवतरणों में अंतर
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− | समझदार हैं क्या यह उचित | + | समझदार हैं क्या यह उचित फ़ैसला होगा? |
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सबकी | सबकी | ||
आँखों में डर होगा। | आँखों में डर होगा। | ||
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मुझसे ऊँचा | मुझसे ऊँचा | ||
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आकाश अगर | आकाश अगर | ||
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अब तो पेड़ों मुंडेरों पर कोयल का आहत स्वर सुनना। | अब तो पेड़ों मुंडेरों पर कोयल का आहत स्वर सुनना। | ||
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पंछी पर होगा। | पंछी पर होगा। | ||
− | सोचो कैसा | + | सोचो कैसा मंज़र होगा! |
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23:22, 2 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
प्रतिरोधी
सबका स्वर होगा।
सोचो कैसा मंज़र होगा!
बहता नीर
नदी का हूँ मैं तटबन्धों के संग क्यों बहूँ?
सृष्टि नियामक एक तत्व हूँ मुझमें हलचल है मैं जल हूँ।
मेरी गति ही
जीवन गति है फिर भी इस गति पर पहरा है!
नदियों! ध्वस्त करो सारे तट यह मंतव्य अभी उभरा है।
आप सभी तो
समझदार हैं क्या यह उचित फ़ैसला होगा?
अनुशासन के बिना धरा पर नदियाँ नहीं ज़लज़ला होगा।
सबकी
आँखों में डर होगा।
सोचो कैसा मंज़र होगा!
मुझसे ऊँचा
कौन विश्व में मैं ऊँचाई का मानक हूँ।
मैं ही चंदा की शीतलता मैं ही सूरज का आतप हूँ।
मुझको अपने
विराट तन पर पंछी दल अनुचित लगते हैं।
आओ सूरज का अग्नि-अंश चिड़ियों के ऊपर रखते हैं।
आकाश अगर
इस ज़िद पर है फिर किसका क्या उड़ान भरना!
अब तो पेड़ों मुंडेरों पर कोयल का आहत स्वर सुनना।
ख़तरा हर
पंछी पर होगा।
सोचो कैसा मंज़र होगा!