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"दुनिया भर के अंधियारे को / अंकित काव्यांश" के अवतरणों में अंतर

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पगडंडी पर आस लिए बैठे किसान का माथा लिखना।
 
पगडंडी पर आस लिए बैठे किसान का माथा लिखना।
  
हार गया मैं जिन मोड़ो पर उन मोड़ो पर आना जाना।
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साथी मेरे अपने गीतों से जन जन का मन बहलाना।
 
साथी मेरे अपने गीतों से जन जन का मन बहलाना।
  
 
बहुत मिलेंगे यार तुम्हे दुनियादारी सिखलाने वाले
 
बहुत मिलेंगे यार तुम्हे दुनियादारी सिखलाने वाले
 
लेकिन आंसू देख किसी के अपनी भी आँखे नम करना।
 
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इच्छित मंजिल पा लेने की जिद में ध्यान रहे यह प्यारे
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इच्छित मंजिल पा लेने की ज़िद में ध्यान रहे यह प्यारे
 
भाग्य बड़ा होता जीवन में अनुचित पथ पर पाँव न धरना।
 
भाग्य बड़ा होता जीवन में अनुचित पथ पर पाँव न धरना।
  
स्वाभिमान की कीमत पर जो मिले उसे फौरन ठुकराना।
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स्वाभिमान की क़ीमत पर जो मिले उसे फ़ौरन ठुकराना।
 
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07:53, 3 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

दुनिया भर के अंधियारे को शब्द ज्योति से दूर भगाना
साथी मेरे अपने गीतों से जन जन का मन बहलाना।

गीत न लिखना केवल नदिया की बलखाती लहरों पर तुम
पल पल मिटते जाते तटबंधों की भी तुम गाथा लिखना।
हरियाती लहराती फसलों की केवल खुशबू मत लिखना
पगडंडी पर आस लिए बैठे किसान का माथा लिखना।

हार गया मैं जिन मोड़ों पर उन मोड़ों पर आना जाना।
साथी मेरे अपने गीतों से जन जन का मन बहलाना।

बहुत मिलेंगे यार तुम्हे दुनियादारी सिखलाने वाले
लेकिन आंसू देख किसी के अपनी भी आँखे नम करना।
इच्छित मंजिल पा लेने की ज़िद में ध्यान रहे यह प्यारे
भाग्य बड़ा होता जीवन में अनुचित पथ पर पाँव न धरना।

स्वाभिमान की क़ीमत पर जो मिले उसे फ़ौरन ठुकराना।