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"पतझर को नियुक्त कर बैठे / अंकित काव्यांश" के अवतरणों में अंतर

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लोटा भर पानी सूरज पर चढ़ा चढ़ाकर हार गए हैं।
 
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अबके बार सुना हैं चन्दा जुटा जुटा हरिद्वार गए हैं।
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गंगाजल भरकर लाएंगे शायद वो फूटी थाली में।
 
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आओ पत्तों की ढेरी में आग लगाकर हाथ सेंक लें।
 
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अगर कनस्तर खाली हैं तो गन्दी थाली नही मिलेगी।
 
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बकरी गाय शुअर संभालू तो हरियाली नही मिलेगी।
 
बकरी गाय शुअर संभालू तो हरियाली नही मिलेगी।
 
 
लो फिर से नवजात मिली है सुबह सुबह गन्दी नाली में
 
लो फिर से नवजात मिली है सुबह सुबह गन्दी नाली में
 
आओ पत्तों की ढेरी में आग लगाकर हाथ सेंक लें।
 
आओ पत्तों की ढेरी में आग लगाकर हाथ सेंक लें।
 
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07:56, 3 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

पतझर को नियुक्त कर बैठे हम बसन्त की रखवाली में
आओ पत्तों की ढेरी में आग लगाकर हाथ सेंक लें।

घूम रहे हैं पूंछ उठाये घूरे घूरे कुत्ते कुतिया
कूँ कूँ करते पीछे पीछे दौड़ लगाते पिल्ले पिलिया।
उबकाई सी छिपी हुई है सूरज की बेबस लाली में
आओ पत्तों की ढेरी में आग लगाकर हाथ सेंक लें।

लोटा भर पानी सूरज पर चढ़ा चढ़ाकर हार गए हैं।
अबके बार सुना है चन्दा जुटा जुटा हरिद्वार गए हैं।
गंगाजल भरकर लाएंगे शायद वो फूटी थाली में।
आओ पत्तों की ढेरी में आग लगाकर हाथ सेंक लें।

अगर कनस्तर खाली हैं तो गन्दी थाली नही मिलेगी।
बकरी गाय शुअर संभालू तो हरियाली नही मिलेगी।
लो फिर से नवजात मिली है सुबह सुबह गन्दी नाली में
आओ पत्तों की ढेरी में आग लगाकर हाथ सेंक लें।