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"कितनी बार नदी के तट तक / अंकित काव्यांश" के अवतरणों में अंतर

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नदी के तट तक मेरा घट पहुंचेगा
 
नदी के तट तक मेरा घट पहुंचेगा
एक बार में भर जाना शायद नसीब में लिखा नही।
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एक बार में भर जाना शायद नसीब में लिखा नहीं।
  
 
छोटे मोटे ताल तलैय्या  
 
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अनगिन गीत  
 
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पढ़े हैं मैंने नचिकेता के प्रश्नों जैसे
 
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लेकिन उनका उत्तर मुझको कालपृष्ठ पर दिखा नही।
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लेकिन उनका उत्तर मुझको कालपृष्ठ पर दिखा नहीं।
  
 
माना सब कुछ  
 
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नदी बहाकर सागर तट तक ले जाती है।
 
नदी बहाकर सागर तट तक ले जाती है।
किन्तु, कहाँ, कब, कैसे, क्यों की अग्नि नही बुझने पाती है।
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किन्तु, कहाँ, कब, कैसे, क्यों की अग्नि नहीं बुझने पाती है।
  
 
परछाई को उजला  
 
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करना चाह रहा है दीपक लेकिन
 
करना चाह रहा है दीपक लेकिन
दीपक के नीचे उजियारा करने वाली शिखा नही।
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दीपक के नीचे उजियारा करने वाली शिखा नहीं।
 
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10:01, 3 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

जाने कितनी बार
नदी के तट तक मेरा घट पहुंचेगा
एक बार में भर जाना शायद नसीब में लिखा नहीं।

छोटे मोटे ताल तलैय्या
क्या जाने क्या थाह प्यास की।
कृष्णपक्ष मय जीवन जानेगा केवल महिमा उजास की।

अनगिन गीत
पढ़े हैं मैंने नचिकेता के प्रश्नों जैसे
लेकिन उनका उत्तर मुझको कालपृष्ठ पर दिखा नहीं।

माना सब कुछ
नदी बहाकर सागर तट तक ले जाती है।
किन्तु, कहाँ, कब, कैसे, क्यों की अग्नि नहीं बुझने पाती है।

परछाई को उजला
करना चाह रहा है दीपक लेकिन
दीपक के नीचे उजियारा करने वाली शिखा नहीं।