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"पीपल का इकलौता पत्ता / अशोक शाह" के अवतरणों में अंतर
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+ | लाल गुलाबी किसलय फहराता | ||
+ | हवा में हिलता बड़ा होता | ||
+ | सूर्य किरणों से आँख मिचौली करता | ||
+ | नीचे गिरता लहराता | ||
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+ | पोर-पोर भरता ऑक्सीजन | ||
+ | डंठलों में जमा करता कार्बन | ||
+ | कचरों के संहार के लिए | ||
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+ | मेरी आँखे अब उसे नहीं | ||
+ | पत्तों को देखतीं हैं | ||
+ | और गिनती है उनकी संख्या | ||
+ | ढूँढ़ती मात्रा और आकार | ||
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+ | देखतीं नहीं उसकी रन्ध्रों से निकलता सूरज | ||
+ | उसकी धारियाँ ही धुरी थी | ||
+ | जिसके चारों ओर घूम जाती पृथ्वी | ||
+ | विहँसता ब्रह्माण्ड ठीक उसकी नोक पर | ||
+ | उसका आकार ही है ऊँ की ध्वनि | ||
+ | जिससे जन्म ले रही दुनिया | ||
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+ | ध्यान से कब देखा उसे | ||
+ | इसलिए करता हूँ बहाना | ||
+ | अनेक चीजों के देखने का | ||
+ | और भटकता जाता हूँ | ||
+ | आस्था के अंतहीन अन्धेरे में | ||
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22:10, 7 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
वर्षों बरस पहले खूब खेला उसके साथ
एक वही इकलौता मित्र
लाल गुलाबी किसलय फहराता
हवा में हिलता बड़ा होता
सूर्य किरणों से आँख मिचौली करता
नीचे गिरता लहराता
पोर-पोर भरता ऑक्सीजन
डंठलों में जमा करता कार्बन
कचरों के संहार के लिए
मेरी आँखे अब उसे नहीं
पत्तों को देखतीं हैं
और गिनती है उनकी संख्या
ढूँढ़ती मात्रा और आकार
देखतीं नहीं उसकी रन्ध्रों से निकलता सूरज
उसकी धारियाँ ही धुरी थी
जिसके चारों ओर घूम जाती पृथ्वी
विहँसता ब्रह्माण्ड ठीक उसकी नोक पर
उसका आकार ही है ऊँ की ध्वनि
जिससे जन्म ले रही दुनिया
ध्यान से कब देखा उसे
इसलिए करता हूँ बहाना
अनेक चीजों के देखने का
और भटकता जाता हूँ
आस्था के अंतहीन अन्धेरे में