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"तुम्हारे साये-सा अजोर / अशोक शाह" के अवतरणों में अंतर
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+ | तुम लौट आतीं तो | ||
+ | मिट जाता निषीथ तम सदियों का | ||
+ | वगरना सिर्फ़ मरने का नाम | ||
+ | ज़िन्दगी तो नहीं | ||
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22:20, 7 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
लूटकर चाँद को पिछली रात
कौन भागा था
छिटकके चाँदनी के टुकड़े
पूरे पस-ए-मंजर पर बिछ गये थे
चाँदनी के दामन पर पडे़
उज्ज्वलतर
धवल पाँवों के निषान
तुम्हारे ही थे न जानम
फ़लक पर चाँद कितना अब
बेरौनक दिखता है
तुम्हारे साये-सा भी अजोर
उसमें नहीं है
तुम लौट आतीं तो
मिट जाता निषीथ तम सदियों का
वगरना सिर्फ़ मरने का नाम
ज़िन्दगी तो नहीं