"उस ज़ुल्फ़ की याद जब आने लगी / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
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उस ज़ुल्फ़ की याद जब आने लगी | उस ज़ुल्फ़ की याद जब आने लगी | ||
इक नागन-सी लहराने लगी | इक नागन-सी लहराने लगी | ||
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क्यों आँख तेरी शरमाने लगी | क्यों आँख तेरी शरमाने लगी | ||
− | + | क्या मौजे-सबा थी मेरी नज़र | |
क्यों ज़ुल्फ़ तेरी बल खाने लगी | क्यों ज़ुल्फ़ तेरी बल खाने लगी | ||
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कुछ साग़र-सी छलकाने लगी | कुछ साग़र-सी छलकाने लगी | ||
− | या रब | + | या रब याँ चल गयी कैसी हवा |
क्यों दिल की कली मुरझाने लगी | क्यों दिल की कली मुरझाने लगी | ||
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क्या बात हुई ये आँख तेरी | क्या बात हुई ये आँख तेरी | ||
− | क्यों लाखों | + | क्यों लाखों क़समें खाने लगी |
अब मेरी निगाहे-शौक़ तेरे | अब मेरी निगाहे-शौक़ तेरे | ||
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गुलज़ारों को महकाने लगी | गुलज़ारों को महकाने लगी | ||
− | बेगोरो- | + | बेगोरो-क़फ़न जंगल में ये लाश |
− | + | दीवाने की ख़ाक उड़ाने लगी | |
− | वो सुब्ह की देवी ज़ेरे शफ़क़ | + | वो सुब्ह की देवी ज़ेरे-शफ़क़ |
घूँघट-सी ज़रा सरकाने लगी | घूँघट-सी ज़रा सरकाने लगी | ||
− | उस वक्त 'फ़िराक' हुई | + | उस वक्त 'फ़िराक' हुई ये ग़ज़ल |
जब तारों को नींद आने लगी | जब तारों को नींद आने लगी | ||
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22:57, 10 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
उस ज़ुल्फ़ की याद जब आने लगी
इक नागन-सी लहराने लगी
जब ज़िक्र तेरा महफ़िल में छिड़ा
क्यों आँख तेरी शरमाने लगी
क्या मौजे-सबा थी मेरी नज़र
क्यों ज़ुल्फ़ तेरी बल खाने लगी
महफ़िल में तेरी एक-एक अदा
कुछ साग़र-सी छलकाने लगी
या रब याँ चल गयी कैसी हवा
क्यों दिल की कली मुरझाने लगी
शामे-वादा कुछ रात गये
तारों को तेरी याद आने लगी
साज़ों ने आँखे झपकायीं
नग़्मों को मेरे नींद आने लगी
जब राहे-ज़िन्दगी काट चुके
हर मंज़िल की याद आने लगी
क्या उन जु़ल्फ़ों को देख लिया
क्यों मौजे-सबा थर्राने लगी
तारे टूटे या आँख कोई
अश्कों से गुहर बरसाने लगी
तहज़ीब उड़ी है धुआँ बन कर
सदियों की सई ठिकाने लगी
कूचा-कूचा रफ़्ता-रफ़्ता
वो चाल क़यामत ढाने लगी
क्या बात हुई ये आँख तेरी
क्यों लाखों क़समें खाने लगी
अब मेरी निगाहे-शौक़ तेरे
रुख़सारों के फूल खिलाने लगी
फिर रात गये बज़्मे-अंजुम
रूदाद तेरी दोहराने लगी
फिर याद तेरी हर सीने के
गुलज़ारों को महकाने लगी
बेगोरो-क़फ़न जंगल में ये लाश
दीवाने की ख़ाक उड़ाने लगी
वो सुब्ह की देवी ज़ेरे-शफ़क़
घूँघट-सी ज़रा सरकाने लगी
उस वक्त 'फ़िराक' हुई ये ग़ज़ल
जब तारों को नींद आने लगी