भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"छिड़ गये साज़े-इश्क़ के गाने / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
खुल गये ज़िन्दगी के मयख़ाने  
 
खुल गये ज़िन्दगी के मयख़ाने  
  
आज तो कुफ्रे-इश्क़े चौंक उठा  
+
आज तो कुफ़्र-ए-इश्क़ चौंक उठा  
 
आज तो बोल उठे हैं दीवाने  
 
आज तो बोल उठे हैं दीवाने  
  
कुछ गराँ<sup>1</sup> हो चला है बारे-नशात
+
कुछ गराँ<ref>भारी</ref> हो चला है बारे-नशात
आज दुखते हैं हुस्ने के शाने<sup>2</sup>
+
आज दुखते हैं हुस्न के शाने<ref>कन्धे</ref>
  
 
बाद मुद्दत के तेरे हिज्र में ‍फि‍र  
 
बाद मुद्दत के तेरे हिज्र में ‍फि‍र  
पंक्ति 23: पंक्ति 23:
 
तू भी आमादा-ए-सफ़र हो 'फ़िराक़'
 
तू भी आमादा-ए-सफ़र हो 'फ़िराक़'
 
काफ़िले उस तरफ़ लगे जाने  
 
काफ़िले उस तरफ़ लगे जाने  
 
1- भारी, 2- कन्धे
 
 
 
</poem>
 
</poem>

11:16, 11 अगस्त 2020 का अवतरण

  

छिड़ गये साज़े-इश्क़ के गाने
खुल गये ज़िन्दगी के मयख़ाने

आज तो कुफ़्र-ए-इश्क़ चौंक उठा
आज तो बोल उठे हैं दीवाने

कुछ गराँ<ref>भारी</ref> हो चला है बारे-नशात
आज दुखते हैं हुस्न के शाने<ref>कन्धे</ref>

बाद मुद्दत के तेरे हिज्र में ‍फि‍र
आज बैठा हूँ दिल को समझाने

हासिले-हुस्नो-इश्क़ बस है यही
आदमी आदमी को पहचाने

तू भी आमादा-ए-सफ़र हो 'फ़िराक़'
काफ़िले उस तरफ़ लगे जाने