भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धूप के दश्त में भी ऐसा मैं तन्हा तो न था / रमेश तन्हा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तन्हा |अनुवादक= |संग्रह=तीसर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:41, 13 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

साँचा:KKCatTraile

 
धूप के दश्त में भी ऐसा मैं तन्हा तो न था
छांव ने छीन लिया है मिरा आया मुझसे

किसी आसेब का पहरा था जो टलता तो न था
धूप के दश्त में भी ऐसा मैं तन्हा तो न था
अपनी पहचान से रिश्ता मिरा टूटा तो न था

अब तलब करता है शीशा मिरा चेहरा मुझ से

धूप के दश्त में भी ऐसा मैं तन्हा तो न था
छांव ने छीन लिया है मिरा आया मुझसे ।