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"इक आग है हर गुल में, इक ख़्वाब है पत्थर में / रमेश तन्हा" के अवतरणों में अंतर
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इक आग है हर गुल में, इक ख़्वाब है पत्थर में
हर चीज़ में पोशीदा फ़ितरत के इशारे हैं
जैसे कि तलब खूं कि पिन्हां रहे-खंज़र में
इक आग है हर गुल में इक ख़्वाब है पत्थर में
कोई न कोई सौदा रहता तो है हर सर में
अनवार से वाबस्ता जैसे कि ममारे हैं
इक आग है हर गुल में, इक ख़्वाब है पत्थर में
हर चीज़ में पोशीदा फ़ितरत के इशारे हैं