भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"काग़ज़ आ.. / सुरेन्द्र डी सोनी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:54, 17 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

काग़ज़ आ
कि क़लम से झरती
लपटों से फूँकूँ
तुझमें प्राण –
फिर
ध्वज बनकर
तू लहरा –
मस्तक
भुजाएँ
जंघाएँ
चरण
सब अंग जला आ
उस वहशी के
जिसने
इस सुन्दर धरती को
बना दिया
कलह का कारख़ाना !