भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आओ हांसां / हरिमोहन सारस्वत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिमोहन सारस्वत |संग्रह= }} {{KKCatRajasthaniR...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:02, 17 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
आओ
आपां गांवां
गांवते-गांवते
नाचां अर खिलखिलांवां
इत्ता हांसां
बक्खी दुखण लागै
आसला-पासला सै ताकै
पण नीं थमां
हिवड़ां री कळी-कळी
खिलणै तांई
रूं रूं
पिंघळनै तांई
आओ
हांसां
आप मतई
बिना बात
जीवां कीं दिन
थोड़ी घणी रात
हांसतां-हांसतां
आओ चेतो करां दिखाण
बातां अर अबखायां
बिच्चाळै
आपां नै खुल’र हांस्यां
कित्ता दिन हुग्या है !