भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रंगों का डर / हरिमोहन सारस्वत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिमोहन सारस्वत |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:17, 17 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

जीवन में रंग जरूरी हैं
रंगों के बिना जिंदगी अधूरी है
लेकिन इन दिनों
डरने लगा है
रंगों से मेरा मन

यदि लाल मेरी पसंद है
लोग मुझे कामरेड बताते हैं
नीला मुझे भाता है
तो यकीनन मेरा दलितों से नाता है.
केसरिया पहनते ही मैं हिंदूवादी
घोषित हो जाता हूं
हरा बताते ही
मुस्लिमों में खो जाता हूं.
काला रंग मुझे सत्ता विरोधी बताता है
गुप्तचर एजेंसियों को
बिना बात मेरा भय सताता है

और सफेद !
वो तो अब रंग ही नहीं है
क्योंकि शांति से जीने का
हमारे पास ढंग ही नहीं है

सच पूछिए
सफेद कुरते-पायजामे
अब इतना शर्मसार करते है
पहनते ही लोग मेरा नाम भूल जाते हैं
नेताजी कहकर प्रहार करते हैं

तुम्ही कहो
मैं रंगों से डरूं नहीं
तो क्या करूं
बेरंग होना मुझे भाता नहीं है
मगर सच कहता हूं
मेरा सियासत से
कोई नाता नहीं है