"बेटी हमारी / विजयशंकर चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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किससे की होगी ज़िद | किससे की होगी ज़िद | ||
अपनी पसन्दीदा चीज़ों के लिए | अपनी पसन्दीदा चीज़ों के लिए | ||
− | किसकी पीठ पर बैठकर | + | किसकी पीठ पर बैठकर हंसी होंगी तुम ? |
− | तुम्हें | + | तुम्हें हंसते हुए देखे हो गए कई बरस |
तुम्हारा वह पहली बार 'जणमणतण' गाना | तुम्हारा वह पहली बार 'जणमणतण' गाना | ||
पहली बार पैरों पर खड़ा हो जाना | पहली बार पैरों पर खड़ा हो जाना | ||
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जिनमें लगे होते थे चूँचूँ करते खिलौने । | जिनमें लगे होते थे चूँचूँ करते खिलौने । | ||
− | अब तो बदल | + | अब तो बदल गई होगी तुम्हारी आँख भी |
हो सकता है तुम्हें मैं न पहचान पाऊँ तुम्हारी बोली से | हो सकता है तुम्हें मैं न पहचान पाऊँ तुम्हारी बोली से | ||
लेकिन मैं पहचान जाऊँगा तुम्हारी आँख के तिल से | लेकिन मैं पहचान जाऊँगा तुम्हारी आँख के तिल से |
15:18, 19 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
मन ही मन हमने फोड़े थे पटाखे
बेटी, दुनिया में तुम्हारे स्वागत के लिए ।
पर जीवन था घनघोर
उस पर दाम्पत्य जीवन कठोर ।
फिर एक दिन भीड़ में खो गईं तुम
ले गया तुम्हें कोई लकड़बग्घा
या उठा ले गए भेड़िए
लेकिन तुम हमारी जाई हो
कौन कहता है कि तुम पराई हो
जब कभी मैं खाता हूँ अच्छा खाना
तो हलक से नहीं उतरता कौर
किसी बच्चे को देता हूँ चाकलेट
तो कलेजा मुँह को आता है,
तुमने किससे माँगे होंगे गुब्बारे
किससे की होगी ज़िद
अपनी पसन्दीदा चीज़ों के लिए
किसकी पीठ पर बैठकर हंसी होंगी तुम ?
तुम्हें हंसते हुए देखे हो गए कई बरस
तुम्हारा वह पहली बार 'जणमणतण' गाना
पहली बार पैरों पर खड़ा हो जाना
जब किसी को भेंट करता हूं रंगबिरंगे कपड़े
तुम्हारे झबलों की याद आती है
जिनमें लगे होते थे चूँचूँ करते खिलौने ।
अब तो बदल गई होगी तुम्हारी आँख भी
हो सकता है तुम्हें मैं न पहचान पाऊँ तुम्हारी बोली से
लेकिन मैं पहचान जाऊँगा तुम्हारी आँख के तिल से
जो तुम्हें मिला है तुम्हारी माँ से ।
जब भी कभी मिलूँगा इस दुनिया में
मैं पहचान लूँगा तुम्हारे हाथों से
वे तुम्हें मैंने दिए हैं ।