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"रचते हुए / सुकेश साहनी" के अवतरणों में अंतर
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मुर्दो में जिन्दा आदमी की तरह | मुर्दो में जिन्दा आदमी की तरह | ||
ठहरना अगर पड़े तो | ठहरना अगर पड़े तो | ||
− | ठहरो | + | ठहरो- |
प्लेटफार्म पर सवारी गाड़ी की तरह | प्लेटफार्म पर सवारी गाड़ी की तरह | ||
− | + | बरसो, बहो, गिरो, खिलो, चीखो, ठहरो- | |
− | + | लौह-खण्ड-सा पत्थर | |
भुरभुरा कर फिर आ मिलेगा | भुरभुरा कर फिर आ मिलेगा | ||
− | मिट्टी की धारा | + | मिट्टी की धारा से। |
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06:23, 20 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
यूँ न देखो
हवा में उड़ रहे
उस पत्थर को
चाहे समझा करे वह
तुम्हें
अपना शत्रु
या फिर
धरती पर रेंगने वाला तुच्छ प्राणी
यूं देखते ही न रहो-
बरसो
बादल की तरह
बहो
नदी की तरह
गिरो
जल प्रपात की तरह
उगो
चट्टान पर बीज की तरह
खिलो
फूल की तरह
चीखो
मुर्दो में जिन्दा आदमी की तरह
ठहरना अगर पड़े तो
ठहरो-
प्लेटफार्म पर सवारी गाड़ी की तरह
बरसो, बहो, गिरो, खिलो, चीखो, ठहरो-
लौह-खण्ड-सा पत्थर
भुरभुरा कर फिर आ मिलेगा
मिट्टी की धारा से।
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