भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सबथोक /अन्ना आख्मातोभा / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= आन्ना अख़्मातवा|अन्ना आख्मातोभ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार= [[आन्ना अख़्मातवा|अन्ना आख्मातोभा]] | |रचनाकार= [[आन्ना अख़्मातवा|अन्ना आख्मातोभा]] | ||
|अनुवादक=सुमन पोखरेल | |अनुवादक=सुमन पोखरेल | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=मनपरेका केही कविता / सुमन पोखरेल |
}} | }} | ||
{{KKCatNepaliRachna}} | {{KKCatNepaliRachna}} |
11:31, 21 अगस्त 2020 का अवतरण
सबै खोसिएको छ, ठगिएको छ, बेचिएकोछ,
कालो मृत्युको कालै पखेटा फिँजिएको छ टाउकामाथि।
सबैथोक खाइसकेको छ भोकले,
तै पनि आँखाअगाडि पर कतै
किन देखिँदैछ उज्यालो?
बिहान हुने बित्तिक्कै
शहरछेउको जङ्गल, सास फेर्छ चेरीको;
चेरीको सुगन्धको।
गर्मीको पारदर्शी गहिरो आकाशमा
रातैपिच्छे नयाँनयाँ ताराहरू छरिन्छन्।
एकदिन पक्कै हुनेछ कुनै चमत्कार
अँध्यारो र भत्किएकाको बीचबाट,
कुनै अज्ञात चमत्कार भएरै छाड्ने छ।
किनभने,
पर्खिरहेछौँ
यसलाई हामी
स-साना केटाकेटी छँदादेखि।