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"इस शहर में चलती है हवा और तरह की / मंसूर उस्मानी" के अवतरणों में अंतर

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12:06, 25 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

इस शहर में चलती है हवा और तरह की
जुर्म और तरह के हैं सज़ा और तरह की

इस बार तो पैमाना उठाया भी नहीं था
इस बार थी रिंदों की ख़ता और तरह की

हम आँखों में आँसू नहीं लाते हैं कि हम ने
पाई है विरासत में अदा और तरह की

इस बात पे नाराज़ था साक़ी कि सर-ए-बज़्म
क्यूँ आई पियालों से सदा और तरह की

इस दौर में मफ़्हूम-ए-मोहब्बत है तिजारत
इस दौर में होती है वफ़ा और तरह की

शबनम की जगह आग की बारिश हो मगर हम
'मंसूर' न माँगेंगे दुआ और तरह की