भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आँखों से मोहब्बत के इशारे निकल आए / मंसूर उस्मानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंसूर उस्मानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:10, 25 अगस्त 2020 का अवतरण
आँखों से मोहब्बत के इशारे निकल आए
बरसात के मौसम में सितारे निकल आए
था तुझ से बिछड़ जाने का एहसास मगर अब
जीने के लिए और सहारे निकल आए
मैं ने तो यूँही ज़िक्र-ए-वफ़ा छेड़ दिया था
बे-साख़्ता क्यूँ अश्क तुम्हारे निकल आए
जब मैं ने सफ़ीने में तिरा नाम लिया है
तूफ़ान की बाहोँ से किनारे निकल आए
हम जाँ तो बचा लाते मगर अपना मुक़द्दर
इस भीड़ में कुछ दोस्त हमारे निकल आए
जुगनू इन्हें समझा था मगर क्या कहूँ 'मंसूर'
मुट्ठी को जो खोला तो शरारे निकल आए