"संशय संसार भरे म्य, करके उत्पात चलगे / प. रघुनाथ" के अवतरणों में अंतर
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संशय संसार भरे म्य, करकै करामात चलगे।
बड़े-बड़े तपधारी, तप कर-कर उत्पात चलगे।। टेक।।
मार्कण्डेय, पाराशर, उद्दालक और वेदव्यास।
दुर्वासा, अगस्त्य, श्रृंगी, गौतम, वशिष्ट वरन संन्यास।।
बाल्मीकि, शुकदेव मुनि, कृपालु और हरिदास।
ध्रुव और प्रह्लाद, पूरण भक्त का भी इतिहास।।
जी आ गया फिर मेरे में, गुरु गोरखनाथ चलगे।
विष्णु जी कै भृगु पंडित मार कै लात चलगे।। 1।।
अजय, अम्ब, विकर्ण, कर्ण, अर्जुन का सुत बब्रूभान।
जगदेव पंवार ने भी कर दिया सिर का दान।।
मोरध्वज, कृष्टिभामा, दशरथ नै तजे थे प्रान।
शिवि, दधिचि, हरिशचन्द्र राजा सत्यवादी और सत्यवान।।
बलि राजा भी दान करे मैं नपवा कै गात चलगे।
सिरसागढ़ में नरसी बनिया भरकै भात चलगे।। 2।।
हिरनाकश्यप, कुम्भकर्ण, रावण और शिशुपाल।
जरासंध, बकरदन्त, शकुनि, कीचक चंडाल।।
द्रयोधन, दुशासन नै द्रोपदी के खींचे बाल।
भगरदन्त का गोत्र सगर था जिसके साठ हजार लाल।।
अश्वमेधी यज्ञ धरे में, सारे एक साथ चलगे।
कपिल मुनि कै लात मार योद्धा बिन बात चलगे।। 3।।
इससे पीछे रजपूती के सिर का हो गया ताज वीरान।
आपस के मां फूट पड़ गयी जयचन्द होगा बेइमान।।
इस्लामी की कमजोरी सै आन बसे यहाँ कृष्टान।
क्यूं रघुनाथ बावला होरा छोड़ दे दुनियां का ध्यान।।
फल सूख बाग हरे में, युसुफ हजरत चलगे।
अकबर शाह, सिकन्दर जैसे भी खाली हाथ चलगे।। 4।।