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"हो कंस! तेरा भ्रम मिटाऊं मैं / प.रघुनाथ" के अवतरणों में अंतर

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राज की तरफ से पहरा, अपना ही लगाओ आप।।
 
राज की तरफ से पहरा, अपना ही लगाओ आप।।

03:44, 27 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

हो कंस तेरा भरम मिटाऊं मैं।
दोनों घर बसे रहें, खुशी की बात बताऊं मैं।।टेक।।

कारागार में खास आपकी, बहन को पहुंचाओ आप।
राज की तरफ से पहरा, अपना ही लगाओ आप।।
अव्वल तो सब देखने को, आओ जाओं अपने आप।
झूंठी हो या सच्ची सारी, घटना को अजमाओ आप।।
बहन की हत्या करने के, पाप से बच जाओ आप।
जिसको समझो अपना शत्रु, उसको ही मिटाओ आप।।
अपना प्रण निभाऊं मैं।
करो खुशी से हुकम आप, जो खुद मर जाऊं मैं।। 1।।

आपके कहने से हमें, मरने तक की भी टाल नहीं।
छोटी-मोटी बात का तो, उठता कोई सवाल नहीं।
हमारी तरफ से अपने जी में, करना और ख्याल नहीं।।
आपकी बात का बली, हमको कोई मलाल नहीं।।
राजा का कानून तोड़े, किसी की मजाल नहीं।
साफ-साफ कहने हमारे, मन में कोई चाल नहीं।।
घणी कहता शरमाऊं मैं।
झूठे सांच जो भी होगा, उसका फल पाऊं मैं।। 2।।

वासुदेव की विनती का, कंस ने सम्मान किया।
कुल की मरियादा बहन, देवकी का ध्यान किया।।
ईश्वर की माया का मन में, कंस ने ना ग्यान किया।
वासुदेव और देवकी का, जेल में स्थान किया।
सन्तरी सवार पहरा, नंगी तेज तान किया।
सारा इन्तजाम उनका, वहीं खान-पान किया।।
कंस ने कहा सुनाऊं मैं।
थारा पता लेने को, खुद रोजाना आऊं मैं।। 3।।

कंस के कुकर्म के शोर से, सारी दुनिया कांप गई।
किसी की आवाज नहीं, कंस के खिलाफ गई।।
देवकी देवी की दुख में, आत्मा सराप गई।
डरी हुई बेचारी बैठ, जेल में चुपचाप गई।।
पति में सती की श्रद्धा, सुरती करती जाप गई।
कविता रघुनाथ कथा, सच्ची दुर्गे की छाप गई।।
सदा सरस्वती को धाऊं मैं।
ग्यान मानसिंह सतगुरु का, दुनिया में गाऊं मैं।। 4।।