Changes

{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''जागरण'''
[''वसन्त के प्रति शिशिर की उक्ति'']
विश्व में तृण-तृण जगी है आज मधु की प्यास आली !
::मैं शिशिर-शीर्णा चली, अब जाग ओ मधुमासवाली !
 
वर्ष की कविता सुनाने खोजते पिक मौन बोले,
पंथ में कोरकवती जूही खड़ी ले नम्र डाली।
::मैं शिशिर-शीर्णा चली, अब जाग ओ मधुमासवाली !
 
लौट जाता गंध वह सौरभ बिना फिर-फिर मलय को,
मौन खग विस्मित- ‘कहाँ अटकी मधुर उल्लासवाली ?’
::मैं शिशिर-शीर्णा चली, अब जाग ओ मधुमासवाली !
 
मुक्त करने को विकल है लाज की मधु-प्रीति कारा;
चाहती छाना दृगों में आज तज कर गाल लाली।
::मैं शिशिर-शीर्णा चली, अब जाग ओ मधुमासवाली !
 
है विकल उल्लास वसुधा के हृदय से फूटने को,
भृंग मधु पीने खड़े उद्यत लिये कर रिक्त प्याली ।
::मैं शिशिर-शीर्णा चली, अब जाग ओ मधुमासवाली !
 
इंद्र की धनुषी बनी तितली पवन में डोलती है;
१९३४
 
 
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,043
edits