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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
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मत छुओ इस झील को।
कंकड़ी मारो नहीं,
खेल में तुमको पुलक-उन्मेष होता है,
लहर बनने में सलिल को क्लेश होता है।
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