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"बालिका से वधू / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

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माथे में सेंदूर पर छोटी दो बिंदी चमचम-सी,<br>
+
<poem>
पपनी पर आँसू की बूँदें मोती-सी, शबनम-सी।<br>
+
माथे में सेंदूर पर छोटी
लदी हुई कलियों में मादक टहनी एक नरम-सी,<br>
+
दो बिंदी चमचम-सी,  
यौवन की विनती-सी भोली, गुमसुम खड़ी शरम-सी।<br><br>
+
पपनी पर आँसू की बूँदें  
 
+
मोती-सी, शबनम-सी।  
पीला चीर, कोर में जिसकी चकमक गोटा-जाली,<br>
+
::लदी हुई कलियों में मादक  
चली पिया के गांव उमर के सोलह फूलोंवाली।<br>
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::टहनी एक नरम-सी,  
पी चुपके आनंद, उदासी भरे सजल चितवन में,<br>
+
::यौवन की विनती-सी भोली,
आँसू में भींगी माया चुपचाप खड़ी आंगन में।<br><br>
+
::गुमसुम खड़ी शरम-सी।
 
+
पीला चीर, कोर में जिसके
आँखों में दे आँख हेरती हैं उसको जब सखियाँ,<br>
+
चकमक गोटा-जाली,  
मुस्की आ जाती मुख पर, हँस देती रोती अँखियाँ।<br>
+
चली पिया के गांव उमर के  
पर, समेट लेती शरमाकर बिखरी-सी मुस्कान,<br>
+
सोलह फूलों वाली।
मिट्टी उकसाने लगती है अपराधिनी-समान।<br><br>
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::पी चुपके आनंद, उदासी  
 
+
::भरे सजल चितवन में,  
भींग रहा मीठी उमंग से दिल का कोना-कोना,<br>
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::आँसू में भींगी माया  
भीतर-भीतर हँसी देख लो, बाहर-बाहर रोना।<br>
+
::चुपचाप खड़ी आंगन में।
तू वह, जो झुरमुट पर आयी हँसती कनक-कली-सी,<br>
+
आँखों में दे आँख हेरती  
तू वह, जो फूटी शराब की निर्झरिणी पतली-सी।<br><br>
+
हैं उसको जब सखियाँ,  
 
+
मुस्की आ जाती मुख पर,
तू वह, रचकर जिसे प्रकृति ने अपना किया सिंगार,<br>
+
हँस देती रोती अँखियाँ।  
तू वह जो धूसर में आयी सुबज रंग की धार।<br>
+
::पर, समेट लेती शरमाकर  
मां की ढीठ दुलार! पिता की ओ लजवंती भोली,<br>
+
::बिखरी-सी मुस्कान,  
ले जायेगी हिय की मणि को अभी पिया की डोली।<br><br>
+
::मिट्टी उकसाने लगती है  
 
+
::अपराधिनी-समान।
कहो, कौन होगी इस घर तब शीतल उजियारी?<br>
+
भींग रहा मीठी उमंग से  
किसे देख हँस-हँस कर फूलेगी सरसों की क्यारी?<br>
+
दिल का कोना-कोना,  
वृक्ष रीझ कर किसे करेंगे पहला फल अर्पण-सा?<br>
+
भीतर-भीतर हँसी देख लो,
झुकते किसको देख पोखरा चमकेगा दर्पण-सा?<br><br>
+
बाहर-बाहर रोना।  
 
+
::तू वह, जो झुरमुट पर आयी
किसके बाल ओज भर देंगे खुलकर मंद पवन में?<br>
+
::हँसती कनक-कली-सी,  
पड़ जायेगी जान देखकर किसको चंद्र-किरन में?<br>
+
::तू वह, जो फूटी शराब की  
महँ-महँ कर मंजरी गले से मिल किसको चूमेगी?<br>
+
::निर्झरिणी पतली-सी।
कौन खेत में खड़ी फ़सल की देवी-सी झूमेगी?<br><br>
+
तू वह, रचकर जिसे प्रकृति  
 
+
ने अपना किया सिंगार,  
बनी फिरेगी कौन बोलती प्रतिमा हरियाली की?<br>
+
तू वह जो धूसर में आयी  
कौन रूह होगी इस धरती फल-फूलों वाली की?<br>
+
सुबज रंग की धार।  
हँसकर हृदय पहन लेता जब कठिन प्रेम-ज़ंजीर,<br>
+
::मां की ढीठ दुलार! पिता की  
खुलकर तब बजते न सुहागिन, पाँवों के मंजीर।<br><br>
+
::ओ लजवंती भोली,  
 
+
::ले जायेगी हिय की मणि को  
घड़ी गिनी जाती तब निशिदिन उँगली की पोरों पर,<br>
+
::अभी पिया की डोली।
प्रिय की याद झूलती है साँसों के हिंडोरों पर।<br>
+
कहो, कौन होगी इस घर की
पलती है दिल का रस पीकर सबसे प्यारी पीर,<br>
+
तब शीतल उजियारी?  
बनती है बिगड़ती रहती पुतली में तस्वीर।<br><br>
+
किसे देख हँस-हँस कर  
 
+
फूलेगी सरसों की क्यारी?  
पड़ जाता चस्का जब मोहक प्रेम-सुधा पीने का,<br>
+
::वृक्ष रीझ कर किसे करेंगे  
सारा स्वाद बदल जाता है दुनिया में जीने का।<br>
+
::पहला फल अर्पण-सा?  
मंगलमय हो पंथ सुहागिन, यह मेरा वरदान;<br>
+
::झुकते किसको देख पोखरा  
हरसिंगार की टहनी-से फूलें तेरे अरमान।<br><br>
+
::चमकेगा दर्पण-सा?
 
+
किसके बाल ओज भर देंगे  
जगे हृदय को शीतल करनेवाली मीठी पीर,<br>
+
खुलकर मंद पवन में?  
निज को डुबो सके निज में, मन हो इतना गंभीर।<br>
+
पड़ जायेगी जान देखकर  
छाया करती रहे सदा तुझको सुहाग की छाँह,<br>
+
किसको चंद्र-किरन में?  
सुख-दुख में ग्रीवा के नीचे हो प्रियतम की बाँह।<br><br>
+
::महँ-महँ कर मंजरी गले से  
 
+
::मिल किसको चूमेगी?  
पल-पल मंगल-लग्न, ज़िंदगी के दिन-दिन त्यौहार,<br>
+
::कौन खेत में खड़ी फ़सल  
उर का प्रेम फूटकर हो आँचल में उजली धार।<br><br>
+
::की देवी-सी झूमेगी?
 +
बनी फिरेगी कौन बोलती  
 +
प्रतिमा हरियाली की?  
 +
कौन रूह होगी इस धरती  
 +
फल-फूलों वाली की?  
 +
::हँसकर हृदय पहन लेता जब  
 +
::कठिन प्रेम-ज़ंजीर,  
 +
::खुलकर तब बजते न सुहागिन,  
 +
::पाँवों के मंजीर।
 +
घड़ी गिनी जाती तब निशिदिन  
 +
उँगली की पोरों पर,  
 +
प्रिय की याद झूलती है  
 +
साँसों के हिंडोरों पर।  
 +
::पलती है दिल का रस पीकर  
 +
::सबसे प्यारी पीर,  
 +
::बनती है बिगड़ती रहती  
 +
::पुतली में तस्वीर।
 +
पड़ जाता चस्का जब मोहक  
 +
प्रेम-सुधा पीने का,  
 +
सारा स्वाद बदल जाता है  
 +
दुनिया में जीने का।  
 +
::मंगलमय हो पंथ सुहागिन,  
 +
::यह मेरा वरदान;  
 +
::हरसिंगार की टहनी-से  
 +
::फूलें तेरे अरमान।
 +
जगे हृदय को शीतल करने-
 +
वाली मीठी पीर,  
 +
निज को डुबो सके निज में,  
 +
मन हो इतना गंभीर।  
 +
::छाया करती रहे सदा  
 +
::तुझको सुहाग की छाँह,  
 +
::सुख-दुख में ग्रीवा के नीचे  
 +
::रहे पिया की बाँह।
 +
पल-पल मंगल-लग्न, ज़िंदगी  
 +
के दिन-दिन त्यौहार,  
 +
उर का प्रेम फूटकर हो  
 +
आँचल में उजली धार।
 +
</poem>

12:38, 27 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

माथे में सेंदूर पर छोटी
दो बिंदी चमचम-सी,
पपनी पर आँसू की बूँदें
मोती-सी, शबनम-सी।
लदी हुई कलियों में मादक
टहनी एक नरम-सी,
यौवन की विनती-सी भोली,
गुमसुम खड़ी शरम-सी।
पीला चीर, कोर में जिसके
चकमक गोटा-जाली,
चली पिया के गांव उमर के
सोलह फूलों वाली।
पी चुपके आनंद, उदासी
भरे सजल चितवन में,
आँसू में भींगी माया
चुपचाप खड़ी आंगन में।
आँखों में दे आँख हेरती
हैं उसको जब सखियाँ,
मुस्की आ जाती मुख पर,
हँस देती रोती अँखियाँ।
पर, समेट लेती शरमाकर
बिखरी-सी मुस्कान,
मिट्टी उकसाने लगती है
अपराधिनी-समान।
भींग रहा मीठी उमंग से
दिल का कोना-कोना,
भीतर-भीतर हँसी देख लो,
बाहर-बाहर रोना।
तू वह, जो झुरमुट पर आयी
हँसती कनक-कली-सी,
तू वह, जो फूटी शराब की
निर्झरिणी पतली-सी।
तू वह, रचकर जिसे प्रकृति
ने अपना किया सिंगार,
तू वह जो धूसर में आयी
सुबज रंग की धार।
मां की ढीठ दुलार! पिता की
ओ लजवंती भोली,
ले जायेगी हिय की मणि को
अभी पिया की डोली।
कहो, कौन होगी इस घर की
तब शीतल उजियारी?
किसे देख हँस-हँस कर
फूलेगी सरसों की क्यारी?
वृक्ष रीझ कर किसे करेंगे
पहला फल अर्पण-सा?
झुकते किसको देख पोखरा
चमकेगा दर्पण-सा?
किसके बाल ओज भर देंगे
खुलकर मंद पवन में?
पड़ जायेगी जान देखकर
किसको चंद्र-किरन में?
महँ-महँ कर मंजरी गले से
मिल किसको चूमेगी?
कौन खेत में खड़ी फ़सल
की देवी-सी झूमेगी?
बनी फिरेगी कौन बोलती
प्रतिमा हरियाली की?
कौन रूह होगी इस धरती
फल-फूलों वाली की?
हँसकर हृदय पहन लेता जब
कठिन प्रेम-ज़ंजीर,
खुलकर तब बजते न सुहागिन,
पाँवों के मंजीर।
घड़ी गिनी जाती तब निशिदिन
उँगली की पोरों पर,
प्रिय की याद झूलती है
साँसों के हिंडोरों पर।
पलती है दिल का रस पीकर
सबसे प्यारी पीर,
बनती है बिगड़ती रहती
पुतली में तस्वीर।
पड़ जाता चस्का जब मोहक
प्रेम-सुधा पीने का,
सारा स्वाद बदल जाता है
दुनिया में जीने का।
मंगलमय हो पंथ सुहागिन,
यह मेरा वरदान;
हरसिंगार की टहनी-से
फूलें तेरे अरमान।
जगे हृदय को शीतल करने-
वाली मीठी पीर,
निज को डुबो सके निज में,
मन हो इतना गंभीर।
छाया करती रहे सदा
तुझको सुहाग की छाँह,
सुख-दुख में ग्रीवा के नीचे
रहे पिया की बाँह।
पल-पल मंगल-लग्न, ज़िंदगी
के दिन-दिन त्यौहार,
उर का प्रेम फूटकर हो
आँचल में उजली धार।