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"कामना अब तो स्वयं ही / सर्वेश अस्थाना" के अवतरणों में अंतर

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16:19, 29 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

कामना अब तो स्वयं ही
स्वयं के उपहास में है।
कर प्रतीक्षा अब प्रतीक्षा
 गहनतम उच्छ्वास में है।।

गगन का भी रंग हरा है
प्रणय से हर घट भरा है,
चन्द्रमा के रश्मि-होठों
से हुयी पुलकित धरा है।
भ्रमर कलिका को निहारे
भावना मधुमास में है।।

झूमती पुष्पित लता है
बस पवन उसका पता है
हो कहाँ आधार प्रिय सा
कुछ नही उसको पता है।
है लिपटती बन प्रिया सी
किन्तु तरु संन्यास में है।।

मुस्कुराती सृष्टि भी है
खिलखिलाती दृष्टि भी है
हर तरफ वातावरण में
मदन मोहक वृष्टि भी है।
किन्तु रेतीले समय में
अंकुरण इतिहास में है।।