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"एक टिम-टिम लौ / शशिकान्त गीते" के अवतरणों में अंतर

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रात मावस की, अकेली
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रात मावस की, हठीली
 
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हवाएँ घात करती हैं
 
हवाएँ घात करती हैं
वायदों से मुकरती हैं
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तिमिर के कान भरती हैं
 
जानती हैं पर-अकाजी
 
जानती हैं पर-अकाजी
 
रोज़ फटती पौ।
 
रोज़ फटती पौ।

11:14, 1 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

रात मावस की, हठीली
एक टिम-टिम लौ।

हवाएँ घात करती हैं
तिमिर के कान भरती हैं
जानती हैं पर-अकाजी
रोज़ फटती पौ।

झिलमिलाते आँख तारे
हैं अकेले ढेर सारे
भूल बैठे थी कभी ली
एकता की सौ।

सूर्य का अनुभव-कथन है
ज़िन्दगी केवल हवन है
जले हाथों देखिए
फिर-फिर मिलेगी जौ।