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तिम्रो जीवन र मृत्युलाई छुट्ट्याउन पनि गाह्रो भो, | तिम्रो जीवन र मृत्युलाई छुट्ट्याउन पनि गाह्रो भो, | ||
साँच्चै गाह्रो भो! | साँच्चै गाह्रो भो! | ||
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20:00, 4 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
सडक-सडक, होटल-होटलमा
कागजका कोरा पर्चाहरूमा
केही लेखिएजस्तो, केही कोरिएजस्तो
यन्त्रमानव
पकेटमा हात हालेर बिस्तारै हिँड्छ, हाँसेर हिँड्छ ।
मानौँ यस दुनियाँमा केही भएको छैन
मानौँ यहाँ केही समस्या नै छैन!
ए पत्थरका सालिकहरू,
तिम्रो जीवन र मृत्युलाई छुट्ट्याउन पनि गाह्रो भो,
साँच्चै गाह्रो भो!