भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बिन तपे लोहा भी फ़ौलाद नहीं हो सकता / अजय सहाब" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय सहाब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:49, 5 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

बिन तपे लोहा भी फ़ौलाद नहीं हो सकता
कोई बिन मश्क़ के उस्ताद नहीं हो सकता

तूने तेशे को छुआ ,और न परबत काटा
तू मियां मुफ़्त में फरहाद नहीं हो सकता

मैं हूँ इक आह मगर कोई अना है मेरी
मैं कोई कांपती फ़रियाद नहीं हो सकता

रोज़ मिलता है मुझे, रोज़ बताता हूँ उसे
नाम हम जैसों का तो याद नहीं हो सकता

उम्र भर तुमने रुलाया जिसे आंसू देकर
इक तबस्सुम से तो अब शाद नहीं हो सकता

मेरा अफ़साना भी इक फूल है वीराने का
जो कभी क़ाबिले रुदाद नहीं हो सकता

दिल की तामीर इलाही ने अजब की है 'सहाब'
ये जो लुट जाए तो आबाद नहीं हो सकता