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"यूँ ही हर बात पे हँसने का बहाना आए / अजय सहाब" के अवतरणों में अंतर

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10:52, 5 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

यूँ ही हर बात पे हँसने का बहाना आए
फिर वो मा'सूम सा बचपन का ज़माना आए

काश लौटें मिरे पापा भी खिलौने ले कर
काश फिर से मिरे हाथों में ख़ज़ाना आए

काश दुनिया की भी फ़ितरत हो मिरी माँ जैसी
जब मैं बिन बात के रूठूँ तो मनाना आए

हम को क़ुदरत ही सिखा देती है कितनी बातें
काश उस्तादों को क़ुदरत सा पढ़ाना आए

आज बचपन कहीं बस्तों में ही उलझा है 'सहाब'
फिर वो तितली को पकड़ना, वो उड़ाना आए