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"अहसास को जब फ़िक्र का दम मिलता है / रमेश तन्हा" के अवतरणों में अंतर

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अहसास को जब फ़िक्र का दम मिलता है
तख़लीक़ का तब जा के कँवल खिलता है
विजदां भी है इक उंसुरे-मलज़ूमे-सुख़न
विजदां ही से पैराहने-फ़न सिलता है।