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"कुछ लोग हक़ीक़त से बिख़र जाते हैं / रमेश तन्हा" के अवतरणों में अंतर
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कुछ लोग हक़ीक़त से बिख़र जाते हैं
छोटी बड़ी हर बात से डर जाते हैं
जीने को समझते हैं तकल्लुफ यानी
जीने के लिए रोज़ ही मर जाते हैं।