भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जब तजरिबे ने जर्ब लगाई, लिक्खी / रमेश तन्हा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तन्हा |अनुवादक= |संग्रह=तीसर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:23, 7 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

 
जब तजरिबे ने जर्ब लगाई, लिक्खी
अपने दिले-मुज़्तर की दुहाई लिक्खी
जो बात न बनती थी, बनाई, लिक्खी
हम ने भी रुबाई मिरे भाई लिक्खी।