"कच्ची गणित का प्रश्न / शार्दुला नोगजा" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=शार्दुला नोगजा | |रचनाकार=शार्दुला नोगजा | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
दोस्त मैं कन्धा तुम्हारा जिस पे सर रख रो सको तुम | दोस्त मैं कन्धा तुम्हारा जिस पे सर रख रो सको तुम | ||
वेदना के, हार के क्षण, भूल जिस पे सो सको तुम | वेदना के, हार के क्षण, भूल जिस पे सो सको तुम | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
मैं तुम्हारे प्रणय की पहली कथा, पहली व्यथा हूँ | मैं तुम्हारे प्रणय की पहली कथा, पहली व्यथा हूँ | ||
मैं तुम्हारा सत्य शाश्वत, मैं तुम्हारी परी-कथा हूँ । | मैं तुम्हारा सत्य शाश्वत, मैं तुम्हारी परी-कथा हूँ । | ||
− | |||
− | |||
</poem> | </poem> |
14:33, 7 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
दोस्त मैं कन्धा तुम्हारा जिस पे सर रख रो सको तुम
वेदना के, हार के क्षण, भूल जिस पे सो सको तुम
बाहें मैं जिनको पकड़ तुम बाँटते खुशियाँ अनोखी
कान वो करते परीक्षा जो कि नित नव-नव सुरों की ।
मैं ही हर संगीत का आगाज़ हूँ और अंत भी हूँ
मैं तुम्हारी मोहिनी हूँ, मैं ही ज्ञानी संत भी हूँ
शिंजनी उस स्पर्श की जिसको नहीं हमने संवारा
चेतना उस स्वप्न की जो ना कभी होगा हमारा ।
हूँ दुआयें मैं वही जो नित तुम्हारे द्वार धोयें
और वो आँसू जो तुमने आज तक खुल के ना रोये
मैं तपिश उन सीढियों की जो दुपहरी लाँघती हैं
और असमंजस पथों की जो पता अब माँगती हैं ।
प्रश्न वो कच्ची गणित का जो नहीं सुलझा सके तुम
शाख जामुन की लचीली जिस पे चढ़ ना आ सके तुम
मैं तुम्हारे प्रणय की पहली कथा, पहली व्यथा हूँ
मैं तुम्हारा सत्य शाश्वत, मैं तुम्हारी परी-कथा हूँ ।