भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खिलौने लकड़ी के / सुरेश विमल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश विमल |अनुवादक= |संग्रह=कहाँ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:48, 14 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
कैसे सुंदर रंग बिरंगे
अहा, खिलौने लकड़ी के।
तितली पंख पसारेगी ज्यों
कभी उड़ेगी जैसे चिड़िया
हिरण चौकड़ी भर दौड़ेगा
मुंह बोलेगी जैसे गुड़िया।
कौन कहेगा बने हुए यह
सभी खिलौने लकड़ी के।
शिल्पी भाई अपनी इस
जादुई कला के गुर थोड़े से
अगर बता दो हमें बना लें
हम भी कुछ हाथी घोड़े से।
बहुत प्रशंसा पाएंगे हम
बना खिलौने लकड़ी के।
