भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
माँ के पाँव बिंवाई वाले।
धान कूटने में पड़ जाने
वाले वह वे हाथों के छाले।
फिर भी घर के काम-काज से माँ ने मानी हार नहीं है।
मिला शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।
दीवाली पर दीप जलायें।
बच्चों के सँग हँसी-ख़ुशी से
घर के सब त्यौहार त्योहार मनायें।पर सच पूछो तो माँ के बिन कोई भी त्यौहार त्योहार नहीं है।
मिला शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।