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अब तो सागर-तल में होगा खण्ड-खण्ड जलयान ।
मत जिज्ञासा करो
कि मेरी यात्राएँ क्यों रह जाती हैं असम्पूर्ण
न अमृत-घट
ऐरावत नहीं, नहीं उर्वशी, न लक्ष्मी
ख़ाली हाथ सही
मैं ही तो एकमात्र दुस्साहस हूँ, जो तट तक वापस आया
ख़ाली हाथ नहीं
मैं धारयिका पृथ्वी को बाँहों में बाँधे ऊपर ले आया ।
सच कहता हूँ,
उस पागल भाटे में वापस आना, वापस लाना
उस पार चले जाने से
दुष्कर था ...।
