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ये ज़िंदगी / निदा फ़ाज़ली

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|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
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|संग्रह=खोया हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली
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<poem>
ये ज़िन्दगी
 
आज जो तुम्हारे
 
बदन कि छोटी-बड़ी नसों में
 
मचल रही है
 
तुम्हारे पैरों से
 
चल रही है
 
तुम्हारी आवाज़ में गले से
 
निकल रही है
 
तुम्हारे लफ़्ज़ों में
 
ढल रही है |
 
ये ज़िन्दगी.....!
 
जाने कितनी सदियों से
 
यूँ ही शक्लें
 
बदल रही है |
 
बदलती शक्लों
 
बदलते ज़िस्मों में
 
चलता फिरता ये इक शरारा
 
जो इस घडी
 
नाम है तुम्हारा !
 
इसी से साड़ी चहल-पहल है |
 
इसी से
 
रौशन है हर नज़ारा
 
सितारे तोड़ो
 
या घर बसाओ
 
अलम* उठाओ
 
या सर झुकाव
 
तुम्हारी आँखों कि रौशनी तक
 
है खेल सारा
 
ये खेल होगा नहीं दोबारा |
-------------------------------------------- * '''जंग का निशान'''</poem>
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